30 दिसंबर 2013

यूँ ही........

बचपन में किसी पुस्तक में पढी यह पंक्तियाँ यूँ ही याद आ गई। उस समय पापा अंतिम छः पंक्तियाँ पढाते वक्त अक्सर इसे आत्मसात करने को कहते थे पर.......!! खैर, पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार है-

गुरू द्रोणाचार्य के माता-पिता उनसे कहते है-

आग लगे इस धनुर्धरता में, लगे आग ब्रह्मास्त्र में
अपने ही बच्चे का कष्ट देखना लिखा ही किस शास्त्र में?
भृगुपति ने अस्त्र-शस्त्र देकर निर्जीव तुम्हें बना दिया,
तप-तीतीक्षा की ज्वाला में जलना तुम्हें सिखा दिया।
वह कौन सा ब्रह्मास्त्र ज्ञाता जिसे द्रुपद शीघ्र भूल जाते है!
वह कौन सा ब्रह्मास्त्र ज्ञाता जो पेट पाल नहीं पाते है!
ब्रह्म विद्या मनुष्यों को सदा महान बनाती है।
यह कौन सी ब्रह्म विद्या जो भिक्षुक तुम्हें बनाती है!


द्रोणाचार्य माता-पिता से कहते हैं-

ब्रह्म विद्या तो हमें कठिनाइयों में जीना सिखाती है,
तप-तीतीक्षा में लीन मानव को कुंदन-कनक बनाती है।
पेट पालना, मोह-पाश में बँधना ये जीवन के आदर्श नहीं
त्याग तपस्या सत्य को भूलता परशुराम का शिष्य नहीं।
वर्षों की मेरी अमोघ तपस्या कभी तो फलित हो जाएगी
ब्रह्मास्त्र व पशुपतास्त्र की साधना यूँ व्यर्थ कभी ना जाएगी।


29 दिसंबर 2013

आम आदमी पार्टी की राह

आम आदमी पार्टी ने अभी अपनी पारी की शुरूआत की है। राजनीतिक क्रांति का ख़व्वाब संजोये इस पार्टी को दिल्ली की जनता ने 28 सीटों के काबिल समझा है। कांग्रेस के समर्थन से 'आप' ने सरकार तो बना ली है। पर, यह सरकार कितने दिन चलेगी इस पर संशय बरकरार है। संशय इसलिए नहीं क्यूँकि पार्टी के विधायक सत्ता की राजनीति में नौसिखिया है बल्कि इसलिए कि कांग्रेस का चरित्र गतिवान है। कांग्रेस इस फिराक में होगी कि मौका मिलते ही इस नई-नवेली पार्टी को किसी भी तरह नीचा दिखाया जाए। उधर भाजपा के लिए भी इस पार्टी ने चुनौतियाँ खड़ी की है। मोदी जहाँ अपने हर भाषण में कांग्रेस की मिट्टी पलीत करते रहे हैं, वहीं केजरीवाल और उनकी पार्टी के खिलाफ बोलने के लिए उनके पास ज्यादा कुछ नहीं है। दिल्ली में विपक्ष में बैठने का फैसला भाजपा ने दो कारणों से किया है। पहला,समय और मौके का इंतजार दूसरा तेजी से बदलती वोटरों की मानसिकता तो भाँपने की कोशिश। कांग्रेस की तरह भाजपा भी ''आप'' की गर्दन नापने के  इंतजार में है।
                                                              
                                                                                      हालाँकि, विश्वासमत हासिल कर लेना आम आदमी पार्टी के लिए समस्या नहीं है। अगर कांग्रेस हवा का रूख भाँपने में असफल होकर केजरीवाल की सरकार गिराती है तो उसे आगामी लोकसभा चुनावों में निश्चित तौर पर इसकी कीमत चुकानी होगी। आम आदमी पार्टी की मुख्य चुनौती पिछले एक-दो सालों में जनता को दिखाये गए सपनों को पूरा करने की होगी। दिल्ली की जनता की मुख्य समस्या बिजली, पानी और भ्रष्टाचार है। बिजली के मामले में केजरीवाल और उसके समर्थकों ने मीडिया के सामने बिजली की दरों में 50 प्रतिशत तक कमी लाने का वादा पूरे जोर-शोर से किया है। परंतु, चुनाव से पहले प्रचार के दौरान प्रकाशित इनकी एक पुस्तक में यह स्वीकार किया गया है कि ''दिल्ली में बिजली कंपनियों के साथ सांठगाठ करके दिल्ली सरकार ने बिजली के दाम 100 प्रतिशत तक बढवा दिए हैं। जबकि आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में बिजली के दाम 23 प्रतिशत कम होने चाहिए।'' फिर दिल्लीवासियों को मीडिया के द्वारा बिजली के दरों में 50 प्रतिशत कमी का सपना दिखाना क्या महज राजनीतिक प्रतिस्पर्धा थी? जबकि भाजपा इन दरों में 30 प्रतिशत कमी का वादा करती आ रही थी। परंतु, वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में केजरीवाल की सरकार अगर बिजली के दामों में थोड़ी भी कमी करता है तो इसका राजनीतिक फायदा केवल वही उठाएगी।
   
      भ्रष्टाचार दिल्ली की अहम समस्या है। आम आदमी पार्टी का उद्गम भी भ्रष्टाचार उन्मूलन से ही शुरू होता है। पार्टी ने वादा किया है कि ''जीतने के बाद जन लोकपाल कानून दस दिन के अंदर पारित किया जाएगा। भ्रष्ट नेताओं को छः महीने में जेल होगी।'' इस मसले पर शुरू से ही दूसरी पार्टियों की तुलना में इस पार्टी का रूख साफ रहा है। परंतु, भ्रष्टाचार कम होने का मतलब है कि हर स्तर पर लोग अपने निजी स्वार्थों में व्यापक कमी लायें। जैसे- दवाई दुकानदार या पुस्तक विक्रेता उपभोक्ताओं को नकदी रसीद दे। वैसा हर व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलिप्त है वह ईमानदारी से अपना व्यवसाय करें। उपभोक्ता को रसीद देने का अर्थ है कि सरकारी खजाना बढेगा। अगर ऐसा कोई नियम बना तो दवाई दुकानदार उपभोक्ताओं को छोटी-छोटी बीमारियों में भी डाक्टर की पर्ची साथ लाने को कहेंगे। मरीज हर छोटी बीमारी में डाक्टर की फीस नहीं देना चाहेगा और संभवतः दुकानदार से रसीद की माँग नहीं करेगा।  हर स्तर पर ईमानदारी बरती गई तो मकान के किराये भी नीचे जाएँगे। इससे रियल ऐस्टेट कारोबारियों का मुनाफा घटेगा जिसे शायद ही वो स्वीकार कर पाये। मकान किराया दिल्लीवासियों की आमदनी का अच्छा स्त्रोत है। हमारे देश में भ्रष्टाचार का दायरा सिर्फ सरकार और सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित है जबकि यह आम लोगों की समस्या भी है। ऐसे में केजरीवाल का अपने जनलोकपाल को प्रभावी और व्यावहारिक बनाना एक महत्तवपूर्ण चुनौती होगी।

28 दिसंबर 2013

मेरी आवाज


मैं जब निराश हो बैठ कर
         डूबता सोच में हूँ,
अंतर्मन में झाँक कर 
         उससे, यह पूछता हूँ।



क्यूँ कोई सरकार,नीतियाँ
         नहीं बनाती सही है?
विषमता की खाईयाँ
         जिससे फैल रही गहरी है।



स्वार्थ हेतु यदा-कदा
        कश्मीर-तेलंगाना सुलगाया जाता है,
और इन सब की आग में
        निर्दोषों को जलाया जाता है।




पैसा और सत्ता की राजनीति 
       कब तक यूँ ही खेली जाएगी?
सोचता हूँ, अपमान और अवहेलना 
       कब तक गरीबों से झेली जाएगी?



फिजा में फैली खामोशी
       संकेत है, हौलनाक तूफान का!
लहू गरम हैं,
       जरूरत है सिर्फ एक उफान का।



मेरी आवाज शंखनाद है
       नए बदलाव का!
अब तो बस तमन्ना है
       फिर एक स्वतंत्र-सुनहरी प्रभात का।

                                              ------स्वरचित--------


20 दिसंबर 2013

वोटों का ग्रेस आएगा कैसे,कांग्रेस सरकार बनाएगी कैसे?

आ़जकल युवराज की साँसे फूली हुई है। फूले भी क्यों ना! नाना की सत्ता से हाथ धोने की नौबत जो दिखने लगी है। अकबर और अंग्रजों के बाद अगर किसी ने संपूर्ण भारत पर राज किया होगा तो वो किया कांग्रेस ने। क्या पूरब, क्या पश्चिम! शायद ही देश का कोई ऐसा कोना हो जहाँ के निवासियों ने कांग्रेस का नामोनिशान न हो। पर हाल के चुनाव परिणामों में युवराज के नेतृत्व में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है उसे भाँपने में कांग्रेसियों ने काफी देर कर दी। दुर्गति तो होनी ही थी सो हो कर रही! पर ऐसी बेइज्जती! हाय राम! राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली में तो हद हो गई! इतनी बुरी पि़टाई का अंदाजा तो बङे-बङे विश्लेषक भी ना लगा पाए थे। कांग्रेस की इस हार से विश्लेषकों की साख पर बट्टा तो लगा ही कईयों ने 'आप' पर विश्लेषण करने से हाय तौबा कर ली। जहाँ दिल्ली में केजरीवाल के धमाके से कांग्रेस के 34 विधायक नहीं रहे वहीं मोदी ने राजस्थान में कांग्रेस को क्वार्टर सेंचुरी भी पूरी नहीं करने दी। मध्यप्रदेश का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा। परंतु सिर्फ मोदी और केजरी असर को हार का कारण मानना जनता की अवमानना होगी। बात उसी जनता की हो रही है जो कांग्रेस की पिछली 3-4 पीढियों से गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ सुनती चली आ रही है। पर कमबख्त गरीबी है कि हटने का नाम ही नहीं लेती। यह तो सुरसा की तरह मुँह बाये जा रही है। इसी बहाने गरीबी हटाने का नारा देने वाला एक परिवार यह मान कर बैठा है कि इस देश से गरीबी केवल वही हटा सकती है। पर गरीब अब इन गरीबी हटाने वालो को ही हटाना चाहती है। नतीजों को देख कर तो यही कहा जा सकता है। इससे युवराज की हँसी का गायब होना तो स्वभाविक है। पर विरोधियों को कौन समझाए। विरोधी तो विरोधी ठहरे। उन्हें युवराज की हँसी में खोट तो दिखाई देता ही है उनके हँसी गायब होने पर भी चुटकी लेते है! अब बेचारे युवराज क्या करे! जनता और विरोधियों के साथ-साथ अपनी पार्टी वाले भी उनके खिलाफ जहर उगलने लगे है। जिसे देखो वही उनके नीचे से कुर्सी खींचकर 'माँ' को उस पर बिठाना चाहता है। अब माँ बेचारी पशोपेश में है! एक तरफ अपना बेटा है, दूसरी तरफ हार के बाद 'माँ' को याद करने वाले हमउम्र बेटे! इधर 'माँ-बेटे' कुछ सोच पाए उससे पहले ही मोदी कोई नयी रैली कर 'माँ-बेटे' की पार्टी की फजीहत कर देते है। माना की दाग अच्छे होते है पर इन्हें धोना भी तो जरूरी है, वरना बदनाम होने पर टूटने का खतरा मँडराते रहता है। मोदी के अलावा 'आप' की हवा का रूख तो तेज भी है और विपरीत दिशा में भी है। आने वाली बैठकों में युवराज की चिंता का  मुख्य विषय यही होगा कि आगामी लोक सभा चुनावों में वोटों का ग्रेस आएगा कैसे और कांग्रेस सरकार बनाएगी कैसे? भविष्यवाणी अभी जल्दबाजी होगी। तिकङमबाजी की गुंजाइश कहीं से भी खत्म नहीं हुई है!