30 दिसंबर 2013

यूँ ही........

बचपन में किसी पुस्तक में पढी यह पंक्तियाँ यूँ ही याद आ गई। उस समय पापा अंतिम छः पंक्तियाँ पढाते वक्त अक्सर इसे आत्मसात करने को कहते थे पर.......!! खैर, पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार है-

गुरू द्रोणाचार्य के माता-पिता उनसे कहते है-

आग लगे इस धनुर्धरता में, लगे आग ब्रह्मास्त्र में
अपने ही बच्चे का कष्ट देखना लिखा ही किस शास्त्र में?
भृगुपति ने अस्त्र-शस्त्र देकर निर्जीव तुम्हें बना दिया,
तप-तीतीक्षा की ज्वाला में जलना तुम्हें सिखा दिया।
वह कौन सा ब्रह्मास्त्र ज्ञाता जिसे द्रुपद शीघ्र भूल जाते है!
वह कौन सा ब्रह्मास्त्र ज्ञाता जो पेट पाल नहीं पाते है!
ब्रह्म विद्या मनुष्यों को सदा महान बनाती है।
यह कौन सी ब्रह्म विद्या जो भिक्षुक तुम्हें बनाती है!


द्रोणाचार्य माता-पिता से कहते हैं-

ब्रह्म विद्या तो हमें कठिनाइयों में जीना सिखाती है,
तप-तीतीक्षा में लीन मानव को कुंदन-कनक बनाती है।
पेट पालना, मोह-पाश में बँधना ये जीवन के आदर्श नहीं
त्याग तपस्या सत्य को भूलता परशुराम का शिष्य नहीं।
वर्षों की मेरी अमोघ तपस्या कभी तो फलित हो जाएगी
ब्रह्मास्त्र व पशुपतास्त्र की साधना यूँ व्यर्थ कभी ना जाएगी।


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