22 जनवरी 2014

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की नींव

एक जमाना था जब जीवन में रोटी, कपड़ा और मकान लोगों की आवश्यकता समझी जाती थी। इसे पाना लोगों के जीवन का उद्देश्य होता था। इस उद्देश्य को पाने के लिए लोग ईमानदारी से मेहनत करते थे। जब इन बुनियादी जरूरतों से ज्यादा लोगों के पास होता था तो वो इसे दान-पुण्य में लगा देते थे। उस समय जनसंख्या भी सीमित होती थी तथा निवेश की अवधारणा संभवत: अस्तित्व में नहीं थी; और अगर थी भी तो एक बहुत सीमित वर्ग के पास।

              परंतु, मानव में जीवन स्तर को   सुधारने की जिद ने संचार के साधनों में बहुत महत्तवपूर्ण परिवर्तन किए। ऐसा इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि पुरातन समाज में प्रचलित रूढियाँ अपने अंतिम स्तर पर या कहें तो गले तक चढ आई थी। तर्कपूर्ण विचारों पर आधारित जीवन-प्रणाली ने तकनीकी विकास के साथ मिल कर एक बार राष्ट्रों का सीमांकन किया। दूसरी बार आर्थिक जरूरतों और संसाधनों के अभाव ने  विश्व के विभिन्न राष्ट्रों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए विवश किया। इसी क्रम में विभिन्न देशों के नेतृत्व में दूरदर्शिता की क्षमता ने राष्ट्रों का आर्थिक आधार पर वर्गीकरण किया यथा विकसित, विकासशील और अविकसित। विकासशील या अविकसित देशों के पास संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इसके बावजूद वो या तो विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में नहीं आ पाए अथवा इस श्रेणी में आने को अब भी संघर्षरत हैं। यही सिद्धांत दो देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सौदेबाजी का आधार बना। और जिन देशों में वैचारिक क्रांति सबसे पहले हुई उन्होंने इस सौदेबाजी में अपना वर्चस्व कायम किया। यूरोपीय देश इसके बेहतरीन उदाहरण हैं जिन्होंने इस क्रांति का फायदा उठाते हुए एशिया और अफ्रीका के देशों को अपना उपनिवेश बनाया।

              अपने अधीन उपनिवेश में इन देशों ने मनमाने तरीके से आर्थिक नीतियाँ लागू की। इन नीतियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन, पुर्तगाल आदि को सम्पन्न बनाया तथा उनके विकास का आधार बने। एक साथ इन देशों की समृद्धि से इनमें प्रभुत्व की लड़ाई शुरू हुई। इसी क्रम में वैसे देशों पर आधिपत्य स्थापित करने की कवायद शुरू हुई जिनमें वैचारिक क्रांति जैसी कोई चीज अस्तित्व मे नहीं थी परंतु संसाधन भरपूर थे। इन देशों के ऩागरिकों के रूचियों को परिवर्तित किया गया तथा इसके पारंपरिक स्वाद को भी बदल दिया गया। भौतिक विकास के मोहपाश में बांधकर इन्हें आधुनिकता की दौड़ मे शामिल होने को उकसाया गया। इसके लिए पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के स्थान पर तथाकथित आधुनिक यूरोपियन शिक्षा को आरोपित करने का हर संभव प्रयास किया गया।

             इसी शिक्षा की आड़ मे उपनिवेशों की सदिय़ो से चली आ रही संस्कृति पर भी प्रहार किया गया। और इसका दूरगामी परिणाम हुआ। उपनिवेश देशों के संसाधनो का जमकर मनमाने ढंग से निरंतर दोहन किया गया।यह सिलसिला अब भी जारी है। बदले मे उन देशों को सुरक्षा तथा समय-समय पर मदद का आश्वासन दिया जाता रहा।

             आज 21वीं सदी में विभिन्न देशों के बीच सहयोग का आधार यही है। कहीं आधुनिकता का मोह है तो
कहीं विवशता। यह समझने लायक है कि किसी का उपयोग तब तक संभव है जब तक उसका आप में विश्वास है। विश्वास को सहलाकर, पुचकारकर अपनी समृद्धि का आधार बनाया जा सकता है। इसी समृद्धि के बल पर उसका शोषण किया जा सकता है और अंतत: उसे अपने उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

03 जनवरी 2014

एस एस सी माने स्टूडेंट सफर कमीशन

जी हाँ! ये वही एस एस सी है जिसके जिम्मे देश भर में प्रतियोगिता परीक्षाएँ आयोजित करा कर विभिन्न सरकारी विभागों में खाली पदों को भरने के लिए उपयुक्त व्यक्ति का चयन करना है। यह एक तरह से डी ओ पी टी के लिए आउटर्सोसिंग एजेंसी का काम करती है। देश भर में लाखों युवक इन परीक्षाओं की तैयारी करते है।
इनमें से कई मध्यम वर्ग से होते है परंतु बहुत सारे ऐसे होते है जिनका बचपन अभावों में गुजरता है। किसी तरह से दो वक्त की रोटी जुटाने वाला माँ-बाप जब यह सुनता है कि उसके बेटे को सरकारी नौकरी मिली है तो वह यह समझ बैठता है कि शायद उसके अभावों का अंत हो जाए! 
                                                 
                                                             परंतु, पढाई से लेकर नौकरी और वह भी सरकारी नौकरी पाने का सफर इतना आसान नहीं होता। सालों की मेहनत के बाद विभिन्न चरणों की परीक्षाओं को पास करना और लाखों अभ्यर्थियों के बीच महज कुछ हजार सीटों के लिए अपना स्थान सुनिश्चित करना सचमुच एक कठिन कार्य है जिसे अथक परिश्रम के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है। और जब परीक्षा एस एस सी की हो तो इसकी महत्ता और इसमें लगने वाले श्रम को नजरअंदाज करना इस परीक्षा की तैयारी करने वाले नौजवानों की काबिलियत पर शक करने जैसा होगा।

          पर, क्या हो अगर अभ्यर्थियों के चयन के पश्चात भी उन्हें कई महीनों तक नियुक्त ना किया जाय? क्या हो जब नियुक्ति -प्रक्रिया में अनावश्यक  विलंब किया जाय? क्या हो जब इस संबंध में उन्हें विभाग द्वारा समुचित जानकारी ना दी जाय? जबकि पूरे भारत में इसके कार्यों के संचालन हेतु कई क्षेत्रीय कार्यालय भी है। इस संदर्भ में  एक कहानी एस एस सी द्वारा वर्ष 2012 में आयोजित संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा की है। फरवरी 2013 में इसके परिणाम घोषित कर दिये गए। परंतु, कुछ कारणवश परिणाम में संशोधन किए गए तथा संशोधित परिणाम मई 2013 में घोषित किया गया। एस एस सी के उत्तर क्षेत्र से 7024 अभ्यर्थियों का अंतिम रूप से चयन हुआ। यह जानकारी सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई। दिनांक 22.09.2013 को किए गए इस आर टी आई आवेदन के जवाब में यह बात सामने आई कि सी बी ई सी में कर सहायक पद के लिए चयनित अभ्यर्थियों की नॉमिनेशन प्रक्रियाधीन है और एक महीने के अंदर यह पूरा कर लिया जाएगा। साथ ही इस सूचना को इसकी वेबसाइट पर डाल दिया जाएगा। 

                        हालाँकि, इस बात को तकरीबन तीन महीने बीत गए परंतु, सी बी ई सी में कर सहायक पद के लिए  अंतिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों की नॉमिनेशन प्रक्रिया को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। अगर कोई अभ्यर्थी इस बाबत जानकारी माँगने एस एस सी के अधिकारियों के पास जाना भी चाहता है तो उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले तो अंदर घुसने के लिए पास बनवाना पड़ता है। अगर किस्मत अच्छी रही तो आपका पास बना दिया जाएगा। लेकिन, यहाँ पास बनवाना टेढी खीर है। इसके लिए आपको किसी अधिकारी का पत्र साथ लेकर जाना होगा जिससे पता चले कि आपको उस अधिकारी ने बुलाया है। पूछताछ कार्यालय की बातों से आप संतुष्ट नहीं हो सकते क्योंकि उनके पास नामिनेशन प्रकिया संबंधित सूचनाएँ होती ही नहीं। उन्हें सिर्फ इतना पता होता है कि नामिनेशन चल रही है। हाँ, एक मुफ्त की सलाह की गारंटी है कि ''वेबसाइट देखते रहिए उस पर आ जाएगा''। इतना ही नहीं आपको  सेक्शन अधिकारी या अन्य कर्मचारियों के कोपभाजन का सामना भी करना पड़ सकता है। और गलती से भी आपने अगर लिखित में कोई सूचना माँग ली हो या आर टी आई कर दी हो तो आपको ऐसी नजर से देखा जाएगा जैसे आपके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा हो या आप पाकिस्तानी जासूस हो! यहाँ के फोन की स्थिति तो और भी खराब है। दिनांक 03.01.2014 को दूरभाष संख्या 011-24360944 पर तकरीबन आधा दर्जन बार फोन करने के बाद भी किसी कर्मचारी से बात नहीं हो पाई परंतु रिसीवर हर बार उठाई गई। और तो और नॉमिनेशन प्रक्रिया पूरी ना होने की वजह यह बताई जाती है कि ए सी मिसिंग है। जबकि सी जी ओ परिसर के बारहवें ब्लॉक में ही उत्तरी क्षेत्र के सारे कार्यालय है। और वह भी आस-पास। फिर, यह समझ से परे है कि एक कमरे से दूसरे कमरे में ए सी को पहुँचने में इतना समय कैसे और क्यूँ लगता है। सचमुच सरकारी अकर्मण्यता का यह बेहतरीन उदाहरण है! 

                                    तो है ना एस एस सी - स्टूडेंट सफर कमीशन!
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