31 दिसंबर 2019

सब्सक्रिप्शन पर उपलब्ध महिन्द्रा एसयूवी 500

क्या आप एसयूवी के शौकीन हैं? क्या एसयूवी की साज-सज्जा, स्पेस, एक्विपमेंट इसकी ऊँची कीमत के बाद भी आपको ललचाते हैं? अगर आप की नजर सड़क चलती किसी एसयूवी पर तब भी ठहर जाती है जबकि आपकी जेब तंग हो तो महिन्द्रा सब्सक्रिप्शन केवल आपके लिए है। इस सब्सक्रिप्शन के जरिये आप भव्य और शानदार महिन्द्रा एसयूवी 500 को बिना खरीदे उसके स्वामी बन सकते हैं। 





महिन्द्र एसयूवी 500
यह महिन्द्रा की उपलब्ध एसयूवी में नवीनतम है। आकर्षक संरचना के साथ सब्सक्रिप्शन पर इसकी उपलब्धता भावी ग्राहकों के लिए राहत लेकर आयी है।  

फीचर्स
  • सुंदर और मुलायम चमड़े से बने डैशबोर्ड और डोर ट्रिम्स 
  • पियानो ब्लैक सेन्ट्रल कॉन्सोल
  • गद्देदार टैन लेैदर युक्त सीट
  • क्रोम युक्त मज़बूत और आकर्षक फ्रन्ट ग्रिल
  • क्लासी टेलगेट और टेल-लैम्प्स क्लस्टर
  • एलईडी डेटाइम रनिंग लाइट
  • स्पोर्टी डायमंड कट एलॉय व्हील्स
  • फॉग लैम्प बेज़ल
  • मज़बूत बौनट
  • क्रोम लाइन्ड विंडोज
  • स्पोर्टी एल्युमिनियम पैडल्स
  • आइसी ब्ल्यू लाउंज लाइटिंग
  • स्कफ प्लेट
महिन्द्रा एसयूवी 500 मनमोहक रंगों में उपलब्ध है। 

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डिस्क्लेमर: उपलब्ध सूचना की पुष्टि का दावा ब्लॉगर नहीं करता। न ही इससे ब्लॉगर का कोई सीधा सम्बन्ध है। पाठक वस्तु/गाड़ी खरीदने से अपने स्तर से पूरी जानकारी एकत्र कर लें। इसके लिए इससे जुड़ी मूल वैबसाइट अथवा नजदीकी महिन्द्रा डीलर से सम्पर्क करें। 

नये साल की खामोशी

खामोशी लपेटे दो दिल
मुंह घुसाए आसमाँ में
ढ़ूंढते खोई खुशियों को
घने काले बादलों की चादर में
जिसने ताना हुआ है
खोल निराशा का
मात देने का करती दावा जिसे
पटाखों की छिटपुट
छल और दंभ भरी रोशनी
क्षणभंगुरता चरित्र जिसका
पर,कालिमा तम की हरने
सूरज का आना तय है।

#TumhaariYaadMein #InYourLovingMemory #01.01.2020



30 दिसंबर 2019

जेरोक्स की दुकानों से डिजिटल होता इंडिया

इंडिया को डिजिटल होने के लिए क्या चाहिए? डिजिटल इंडिया कैसा दिखेगा? इस सवाल का कोई सटीक जवाब हो सकता है क्या?क्या डिजिटल इंडिया का नारा अन्य सियासी नारों से अलग है?शायद ही, इन सवालों का जवाब आला अफसरों और हुक्मरानों के पास हो! इन सवालों का जवाब खोजने के क्रम में जिम्मेेदार अधिकारियों और सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों की पेशानियों पर बल पड़ा हो, यह अविश्वसनीय लगता है। 

01 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किये डिजिटल इंडिया अभियान को भारत सरकार की महत्तवाकांक्षी योजनाओं में शुमार किया गया जिसका उद्देश्य सरकारी योजनाओं का लाभ नागरिकों तक इलैक्ट्रॉनिकली पहुँचाना था। इसके लिए ऑनलाइन आधारभूत संरचनाओं में सुधार, इंटरनेट कनैक्टिविटी को प्रोत्साहन, ग्रामीण भारत को उच्च और तीव्र गति वाले इंटरनेट नेटवर्क से जोड़कर भारत को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में डिजिटली सशक्त बनाना था। 

वास्तव में यह पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं की पॉलिशिंग थी। इस अभियान के अंतर्गत धरातल पर सामान्य नागरिकों के लिए इन उद्देश्यों की क्रियान्वयन-प्रक्रियाओं और पद्धतियों पर युक्तियुक्त विचार नहीं किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि फायदा केवल उन वर्गों को मिला जिनके पास इंटरनेट युक्त उपकरण जैसे एंड्रॉयड फोन आदि उपलब्ध थे। इस अभियान का असल और सबसे बड़ा फायदा गली-मोहल्ले में कुकुरमुत्ते की तरह खुले फोटोकॉपी करने वाली, फोटो बनाने वाली दुकानों/साइबर कैफे को मिला। बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों के दस्तावेज़ फोटोकॉपी की इन दुकानों पर पहुँचने लगे। सरकारी स्कूलों के आंकड़े आसानी से इन दुकानों पर पहुँचने लगे। सामान्य नागरिक जाति, निवासी, आधार, पैन कॉर्ड, राशन कॉर्ड, ईडब्ल्यूएस(EWS) और न जाने कौन-कौन से कार्ड बनाने के लिए इन दुकानों के आगे खड़े होते रहे। स्कूलों के विद्यार्थी ई-मेल अकाउंट बनाने के लिए इन दुकानों पर आते रहे। 

फोटोकॉपी की जिन दुकानों पर कभी गिने-चुने लोग होते, वो ग्राहकों की भीड़ से खचाखच भरी रहने लगी। ई-मेल अकाउंट बनाने के 10-15 रूपए, प्रिंटआउट के 10-20 रूपए, किसी तरह के फॉर्म भरने के 20-100 रूपए तक लिए जाने लगे। शहरी इलाकों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने के कारण दरों में थोड़ी बहुत नरमी आई। बुरा हाल ग्रामीण इलाकों का हुआ जहाँ एक ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंटआउट भी 15 से 20 रूपए में मिल रहा था। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।

हालांकि, फायदे का बड़ा अंश पहले से अपने आप को स्थापित कर चुके बड़े दुकानदारों के ही हिस्से आया। इन दुकानों की स्थिति यह है कि यहाँ पर काम कर रहे लड़के सामान्य रूप से कम उम्र के ही मिलेंगे। उनमें भी अधिकतर वो हैं जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इन लड़कों में से अधिकतर स्कूल या कॉलेजों में नामांकित हैं। इन दुकानों में से अधिकांश पर श्रम और श्रमिक सम्बन्धी कानून लागू नहीं होते। भले ही ये नियम काम के घंटों को लेकर हो या पारिश्रमिक सम्बन्धी। अमूमन 9-12 घंटों के काम के बदले इन्हें 1000 से 5000 भारतीय रूपए मिल जाते हैं। उससे पहले काम सीखने के नाम पर इन्हें कई जगह कुछ महीने फ्री में अपनी सेवाएँ देनी होती है। 

इन सेवाओं की प्राप्ति के लिए वसुधा केन्द्रों पर भी कम भीड़ नहीं होती। जिन लोगों के नाम वसुधा केन्द्रों का पंजीकरण होता है, वो भी कमाई में पीछे नहीं रहना चाहते और आधार पंजीकरण से लेकर उसे अद्दतित करने, अन्य प्रमाण-पत्रों के आवेदन के लिए निर्धारित सरकारी दरों से अधिक की राशि खुलेेआम वसूलते हैं। इसका विरोध करने वालों के काम को लटकाया जाता है। सचमुच, गुलजार होते जेरोक्स की दुकानों से इंडिया डिजिटल हो रहा है। #DigitalIndia #डिजिटलइंडिया #EWS #AadhaarRegistration #VasudhaKendra #वसुधा_केन्द्र #InternetConnectivity








29 दिसंबर 2019

नये रोग से लड़ने के नाम पर पुराने रोगों के लक्षण उभार गया ये साल

2019 का साल भारत में राजनीतिक विपक्षियों के लिए अहम रहा। वर्ष 2014 से लेकर जो विपक्ष अब तक मुद्दों के नाम पर हांफते रहा उन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम,2019 के विरोध ने जैसे ऑक्सीजन देने का नाम किया हो। अन्ना आंदोलन और निर्भया कांड के वक्त से उपजे जनाक्रोश का फायदा जिस तरह से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और भारत के मौज़ूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उठाया, वैसा फायदा उस दौर का कोई राजनीतिक शख्स उठा नहीं सका। वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उस समय अंगूर खाने की कोशिश की लेकिन उनके लिए लिए वह अंगूर खट्टा ही निकला। बहुसंख्यक हिंदुओं की आकांक्षाओं को ख़ूब हवा दी गयी जिससे अंतत: ठंडक भारतीय जनता पार्टी के कलेजे को ही मिली। 

वर्ष 2014 के बाद से ख़बर रूपी नलों का मुंह बंद हो गया और अचानक से अफसरों और नेताओं के घोटालों, भ्रष्टाचारों की ख़बरें अख़बारों, टेलीविजन चैनलों, रेडियो से नदारद होने लगी। मीडिया के अधिकांश स्वरूपों पर मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक चेहरे का वर्चस्व स्थापित होने लगा। एक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का। प्रधानमंत्री निरंतर अपने मन की बात करते रहे पर लोगों के मन की बात सुनने की औपचारिकताओं को भी पूरा करते दिखने की छवि वो बनाते देखे गए।


#नागरिकता_कानून_आंदोलन


2014-19 का कार्यकाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पसंदीदा अफसरों को ऊँचे ओहदों पर बिठाने से लेकर शुरू हुआ और नीति आयोग के गठन से लेकर विमुद्रीकरण(सामान्य प्रचलित शब्द 'नोटबंदी'), बालाकोट, उरी हमले, तीन तलाक़ से होता हुआ गरीब सवर्णों को आरक्षण देने जैसे भुनाए जा सकने वाले मुद्दे पर जाकर ठहरा। मुद्दों को अपने पक्ष में भुनाने की हर सम्भावित क्षमता से लैस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम ने विपक्ष की तरफ से उठी विरोध की चें-चूं को बड़ी आसानी से धता बता दिया।


#CAA_protest_in_Purnea


2019 आम चुनाव का साल था। मुद्दों को हवा देकर उभारने और उनको भुनाने की सियासी दौड़ में विपक्ष पस्त दिख रहा था। इस पर कुठाराघाट किया आम चुनाव के नतीजों ने जिसमें भारतीय जनता पार्टी 303 सीटें जीते कर अपने दम पर बहुमत पार कर गई। इन घोषित नतीजों ने नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल को पाँच सालों का समय-विस्तार दिया। वहीं, विपक्ष के लिए सड़कों का रास्ता ही खुला छोड़ा। विपक्षी 2014 से पहले से ही जिन्हें रोग बताता रहा उसका उपचार उनके पास भी नहीं था। उनमें से अधिकांश अपनी ही करनी के फल से बचने की जुगत कर रहे थे। जाने किस डर से विपक्षियों ने मौन धारण किया और बड़ी ही चतुराई से शिथिलता बरतते रहे।


#CAA_protest

इसके बाद जम्मू-कश्मीर में नासूड़ बन चुके धारा 370 को नियोजित और बलपूर्वक हटाने के फैसले और उसके क्रियान्वयन ने थोड़ी हलचल पैदा की पर उसका ज्यादा बड़ा लाभ विपक्षियों को नहीं मिला और वह केवल संसद के अंदर ही मुद्दा बना रहा। इसके तुरंत बाद अयोध्या के मंदिर-मस्जिद भूमि विवाद में फैसला आया जिसका लाभ भी भारतीय जनता पार्टी को मिलता दिखा। इसका दूसरा असर ओवैसी के धीरे-धीरे किंतु बढ़ रहे मुस्लिम वोटबैंक के रूप में सामने आया।  

हालंकि, 2019 का दिसम्बर विपक्षियों के लिए खासा महत्तवपूर्ण रहा। नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के विरोध में सड़कें विपक्षी नेताओं की अगुआई से भरी दिखाई दी। अलाव की जगह जलते टायरों, गाड़ियों, पत्थरों, पोस्टरों और एक उन्मादी भीड़ ने ले ली। प्रदर्शन केवल इसकी अनुमति के लिए प्रस्तुत किये गए आवेदनों में ही शांतिपूर्ण रहा। अख़बार और टेलीविजन चैनलों पर टूटे हाथ, फूटे सिर, खून से सने कपड़े ही दिखाई देने लगे। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में निकली नागरिकों की रैली को मुस्लिम-विरोधी कानून का शक्ल दे दिया गया। यूँ कह लीजिए कि जाते-जाते साल 2019 नये रोग से लड़ने के नाम पर पुराने रोगों के उन्मादी लक्षणों को बड़ी मज़बूती से उभार गया। 


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