मैं जब निराश हो बैठ कर
डूबता सोच में हूँ,
अंतर्मन में झाँक कर
उससे, यह पूछता हूँ।
क्यूँ कोई सरकार,नीतियाँ
नहीं बनाती सही है?
विषमता की खाईयाँ
जिससे फैल रही गहरी है।
स्वार्थ हेतु यदा-कदा
कश्मीर-तेलंगाना सुलगाया जाता है,
और इन सब की आग में
निर्दोषों को जलाया जाता है।
पैसा और सत्ता की राजनीति
कब तक यूँ ही खेली जाएगी?
सोचता हूँ, अपमान और अवहेलना
कब तक गरीबों से झेली जाएगी?
फिजा में फैली खामोशी
संकेत है, हौलनाक तूफान का!
लहू गरम हैं,
जरूरत है सिर्फ एक उफान का।
मेरी आवाज शंखनाद है
नए बदलाव का!
अब तो बस तमन्ना है
फिर एक स्वतंत्र-सुनहरी प्रभात का।
------स्वरचित--------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें