29 दिसंबर 2013

आम आदमी पार्टी की राह

आम आदमी पार्टी ने अभी अपनी पारी की शुरूआत की है। राजनीतिक क्रांति का ख़व्वाब संजोये इस पार्टी को दिल्ली की जनता ने 28 सीटों के काबिल समझा है। कांग्रेस के समर्थन से 'आप' ने सरकार तो बना ली है। पर, यह सरकार कितने दिन चलेगी इस पर संशय बरकरार है। संशय इसलिए नहीं क्यूँकि पार्टी के विधायक सत्ता की राजनीति में नौसिखिया है बल्कि इसलिए कि कांग्रेस का चरित्र गतिवान है। कांग्रेस इस फिराक में होगी कि मौका मिलते ही इस नई-नवेली पार्टी को किसी भी तरह नीचा दिखाया जाए। उधर भाजपा के लिए भी इस पार्टी ने चुनौतियाँ खड़ी की है। मोदी जहाँ अपने हर भाषण में कांग्रेस की मिट्टी पलीत करते रहे हैं, वहीं केजरीवाल और उनकी पार्टी के खिलाफ बोलने के लिए उनके पास ज्यादा कुछ नहीं है। दिल्ली में विपक्ष में बैठने का फैसला भाजपा ने दो कारणों से किया है। पहला,समय और मौके का इंतजार दूसरा तेजी से बदलती वोटरों की मानसिकता तो भाँपने की कोशिश। कांग्रेस की तरह भाजपा भी ''आप'' की गर्दन नापने के  इंतजार में है।
                                                              
                                                                                      हालाँकि, विश्वासमत हासिल कर लेना आम आदमी पार्टी के लिए समस्या नहीं है। अगर कांग्रेस हवा का रूख भाँपने में असफल होकर केजरीवाल की सरकार गिराती है तो उसे आगामी लोकसभा चुनावों में निश्चित तौर पर इसकी कीमत चुकानी होगी। आम आदमी पार्टी की मुख्य चुनौती पिछले एक-दो सालों में जनता को दिखाये गए सपनों को पूरा करने की होगी। दिल्ली की जनता की मुख्य समस्या बिजली, पानी और भ्रष्टाचार है। बिजली के मामले में केजरीवाल और उसके समर्थकों ने मीडिया के सामने बिजली की दरों में 50 प्रतिशत तक कमी लाने का वादा पूरे जोर-शोर से किया है। परंतु, चुनाव से पहले प्रचार के दौरान प्रकाशित इनकी एक पुस्तक में यह स्वीकार किया गया है कि ''दिल्ली में बिजली कंपनियों के साथ सांठगाठ करके दिल्ली सरकार ने बिजली के दाम 100 प्रतिशत तक बढवा दिए हैं। जबकि आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में बिजली के दाम 23 प्रतिशत कम होने चाहिए।'' फिर दिल्लीवासियों को मीडिया के द्वारा बिजली के दरों में 50 प्रतिशत कमी का सपना दिखाना क्या महज राजनीतिक प्रतिस्पर्धा थी? जबकि भाजपा इन दरों में 30 प्रतिशत कमी का वादा करती आ रही थी। परंतु, वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में केजरीवाल की सरकार अगर बिजली के दामों में थोड़ी भी कमी करता है तो इसका राजनीतिक फायदा केवल वही उठाएगी।
   
      भ्रष्टाचार दिल्ली की अहम समस्या है। आम आदमी पार्टी का उद्गम भी भ्रष्टाचार उन्मूलन से ही शुरू होता है। पार्टी ने वादा किया है कि ''जीतने के बाद जन लोकपाल कानून दस दिन के अंदर पारित किया जाएगा। भ्रष्ट नेताओं को छः महीने में जेल होगी।'' इस मसले पर शुरू से ही दूसरी पार्टियों की तुलना में इस पार्टी का रूख साफ रहा है। परंतु, भ्रष्टाचार कम होने का मतलब है कि हर स्तर पर लोग अपने निजी स्वार्थों में व्यापक कमी लायें। जैसे- दवाई दुकानदार या पुस्तक विक्रेता उपभोक्ताओं को नकदी रसीद दे। वैसा हर व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलिप्त है वह ईमानदारी से अपना व्यवसाय करें। उपभोक्ता को रसीद देने का अर्थ है कि सरकारी खजाना बढेगा। अगर ऐसा कोई नियम बना तो दवाई दुकानदार उपभोक्ताओं को छोटी-छोटी बीमारियों में भी डाक्टर की पर्ची साथ लाने को कहेंगे। मरीज हर छोटी बीमारी में डाक्टर की फीस नहीं देना चाहेगा और संभवतः दुकानदार से रसीद की माँग नहीं करेगा।  हर स्तर पर ईमानदारी बरती गई तो मकान के किराये भी नीचे जाएँगे। इससे रियल ऐस्टेट कारोबारियों का मुनाफा घटेगा जिसे शायद ही वो स्वीकार कर पाये। मकान किराया दिल्लीवासियों की आमदनी का अच्छा स्त्रोत है। हमारे देश में भ्रष्टाचार का दायरा सिर्फ सरकार और सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित है जबकि यह आम लोगों की समस्या भी है। ऐसे में केजरीवाल का अपने जनलोकपाल को प्रभावी और व्यावहारिक बनाना एक महत्तवपूर्ण चुनौती होगी।

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