20 दिसंबर 2013

वोटों का ग्रेस आएगा कैसे,कांग्रेस सरकार बनाएगी कैसे?

आ़जकल युवराज की साँसे फूली हुई है। फूले भी क्यों ना! नाना की सत्ता से हाथ धोने की नौबत जो दिखने लगी है। अकबर और अंग्रजों के बाद अगर किसी ने संपूर्ण भारत पर राज किया होगा तो वो किया कांग्रेस ने। क्या पूरब, क्या पश्चिम! शायद ही देश का कोई ऐसा कोना हो जहाँ के निवासियों ने कांग्रेस का नामोनिशान न हो। पर हाल के चुनाव परिणामों में युवराज के नेतृत्व में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है उसे भाँपने में कांग्रेसियों ने काफी देर कर दी। दुर्गति तो होनी ही थी सो हो कर रही! पर ऐसी बेइज्जती! हाय राम! राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली में तो हद हो गई! इतनी बुरी पि़टाई का अंदाजा तो बङे-बङे विश्लेषक भी ना लगा पाए थे। कांग्रेस की इस हार से विश्लेषकों की साख पर बट्टा तो लगा ही कईयों ने 'आप' पर विश्लेषण करने से हाय तौबा कर ली। जहाँ दिल्ली में केजरीवाल के धमाके से कांग्रेस के 34 विधायक नहीं रहे वहीं मोदी ने राजस्थान में कांग्रेस को क्वार्टर सेंचुरी भी पूरी नहीं करने दी। मध्यप्रदेश का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा। परंतु सिर्फ मोदी और केजरी असर को हार का कारण मानना जनता की अवमानना होगी। बात उसी जनता की हो रही है जो कांग्रेस की पिछली 3-4 पीढियों से गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ सुनती चली आ रही है। पर कमबख्त गरीबी है कि हटने का नाम ही नहीं लेती। यह तो सुरसा की तरह मुँह बाये जा रही है। इसी बहाने गरीबी हटाने का नारा देने वाला एक परिवार यह मान कर बैठा है कि इस देश से गरीबी केवल वही हटा सकती है। पर गरीब अब इन गरीबी हटाने वालो को ही हटाना चाहती है। नतीजों को देख कर तो यही कहा जा सकता है। इससे युवराज की हँसी का गायब होना तो स्वभाविक है। पर विरोधियों को कौन समझाए। विरोधी तो विरोधी ठहरे। उन्हें युवराज की हँसी में खोट तो दिखाई देता ही है उनके हँसी गायब होने पर भी चुटकी लेते है! अब बेचारे युवराज क्या करे! जनता और विरोधियों के साथ-साथ अपनी पार्टी वाले भी उनके खिलाफ जहर उगलने लगे है। जिसे देखो वही उनके नीचे से कुर्सी खींचकर 'माँ' को उस पर बिठाना चाहता है। अब माँ बेचारी पशोपेश में है! एक तरफ अपना बेटा है, दूसरी तरफ हार के बाद 'माँ' को याद करने वाले हमउम्र बेटे! इधर 'माँ-बेटे' कुछ सोच पाए उससे पहले ही मोदी कोई नयी रैली कर 'माँ-बेटे' की पार्टी की फजीहत कर देते है। माना की दाग अच्छे होते है पर इन्हें धोना भी तो जरूरी है, वरना बदनाम होने पर टूटने का खतरा मँडराते रहता है। मोदी के अलावा 'आप' की हवा का रूख तो तेज भी है और विपरीत दिशा में भी है। आने वाली बैठकों में युवराज की चिंता का  मुख्य विषय यही होगा कि आगामी लोक सभा चुनावों में वोटों का ग्रेस आएगा कैसे और कांग्रेस सरकार बनाएगी कैसे? भविष्यवाणी अभी जल्दबाजी होगी। तिकङमबाजी की गुंजाइश कहीं से भी खत्म नहीं हुई है!

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