पीड़ित अर्जी देता
है और मुख्यमंत्री सचिवों या अधिकारियों को निर्देश. सचिव या अधिकारी से निर्देश सैकड़ों
किलोमीटर घूम कर डीएम या एसपी तक पहुँचता है. निर्देश का सफर चलता रहता है डीएम-एसपी
से थानेदार, बीडीओ, एसडीओ तक.
तस्वीर: गूगल से साभार
निर्देश राजधानी से
जिला होते हुए अनुमंडल, ब्लॉक और थाने तक घूमता रहता है और पीड़ित फिर पहुँचता है वहीं
जहाँ नाउम्मीदी ने पहले ही उसे घेरा था. पीड़ित का काम नहीं होता. अब घूमने की बारी
जाँच रिपोर्ट की होती है, एंटी क्लॉक वाइज.
तस्वीर: गूगल से साभार
अपवाद: जनता दरबार किसी का भी हो,
थोड़ा क्लाइमेक्स पैदा कर मीडिया की नजरों में आने वाले मामलों में फोन घूमती है
और क्विक एक्शन के अवसर बढ़ जाते हैं.
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