30 जुलाई 2014

संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को लेकर विदेश राज्य-मंत्री वी.के.सिंह का राज्य सभा में बयान



सरकार हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा बनाने की दिशा में लगातार कोशिश कर रही है। इस मामले को देखने और जरूरी कदम उठाने के लिए 26 फरवरी 2003 को विदेश मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। इसी मामले में विदेश राज्य-मंत्री की अध्यक्षता में एक उप-समिति भी गठित की गई थी।  इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए 8वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 13 जुलाई 2007 को न्यूयार्क में आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन सत्र संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान कि मून की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किया गया।  आज तक 9 विश्व हिंदी कांफ्रेंस आयोजित किए जा चुके हैं। इसके अलावा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रोत्साहित करने के लिए 11 फरवरी 2008 को मॉरिशस में एक विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना भी की गई है। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात हिंदी में रखी है। साथ ही इसके अंग्रेजी अनुवाद के लिए भी आवश्यक इंतजाम किए गए हैं। भारत सरकार के सतत प्रयासों का ही यह परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र अपनी रेडियो वेबसाइट पर हिंदी में भी कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। 

किसी भी भाषा के संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा की सूची में स्थान पाने के कुछ पहलू हैं- प्रक्रियागत, वित्तीय और वैधानिक। पहले कदम के तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों के बहुमत से औपचारिक प्रस्ताव पास कराना होता है। 


ऐसा कोई भी प्रस्ताव अब तक पेश नहीं किया गया है।


संयुक्त राष्ट्र द्वारा दो वर्ष 2014-2015 में 6 आधिकारिक भाषाओं में सेवा प्रदान करने का कुल खर्च तकरीबन 492 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। इस आधार पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसी एक आधिकारिक भाषा में सेवा प्रदान करने की कीमत तकरीबन 41 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष है। 


 संयुक्त राष्ट्र के चारों मुख्यालय- न्यूयार्क, जेनेवा, विएना और नैरोबी में एक आधिकारिक भाषा में सेवा मुहैया कराने में आनेवाले इस खर्च में निम्नलिखित खर्च समाहित हैं- प्रलेखीकरण(डॉक्यूमेंटेशन), भाषांतरण(ट्रांसलेशन), व्याख्या(इंटरप्रेटेशन), शब्दश: रिपोर्टिंग(वर्बेटिम रिपोर्टिंग), छपाई(प्रिंटिंग) आदि। हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अंगीकार करने पर अतिरिक्त उपस्कर और व्याख्या करने वालों के लिए अतिरिक्त जगह की जरूरत पड़ेगी, जिसके लिए अतिरिक्त खर्च वहन करना होगा।


 एक नई आधिकारिक भाषा को अंगीकार करने में होने वाला खर्च संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के द्वारा वहन किया जाता है जो स्केल ऑफ असेसमेंट पर आधारित होता है।

पीआईबी से कुछ संशोधनों के साथ अनूदित।

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