06 जुलाई 2014

बजट द्वादशी

सोलहवीं लोकसभा का गठन हो चुका है। यह लोकसभा कई मायनों में अनोखी है। कारण, युवा पीढी ने अपनी आँखों के सामने देश के किसी राज्य के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री पद के लिए उठते, बढते और बनते देखा है। पिछली लोकसभा में सांसदों के कारनामों से शर्म महसूस करने वाला यह युवा वर्ग आशान्वित हैं कि इस बार इतिहास नहीं दोहराया जाएगा। परंतु, अभी जिस मुद्दे पर यह युवा वर्ग गिद्ध दृष्टि जमाए बैठा है वह कल से शुरू होने वाला  बजट द्वादशी है


सात जुलाई से लोकसभा सत्र आरंभ होने जा रहा है। इसमें परंपरागत तरीके से रेल बजट और आम बजट पेश करने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। चूँकि, आम बजट सरकार की राजकोषीय नीति का आईना होता है और बिना कोष के सत्ता एक अलाभकारी धंधे से ज्यादा कुछ नहीं होती, तो निश्चित तौर पर यह देखना जरूरी हो जाता है कि सरकार कोष-प्रबंधन कैसे करेगी। यह युवा वर्ग जानने को उत्सुक है कि मोदी कैसे ''पाँच टी'' के जुमले को देश के व्यवहार में शामिल कर देंगे! ''भारत ब्रांड'' बनाने की प्रक्रिया उतनी आसान नहीं है जितनी ''अमूल ब्रांड'' से ''मोदी ब्रांड'' बनाने की। क्योंकि, यह देश सवा-सौ करोड़ का है और अनेक आधारों पर एकरूपता की कमी है। चुनाव से पहले का मोदी-वायदा भूलने में अभी काफी समय है। ऐसे में हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को हवा देकर पीछे हटने का जो फायदा दिल्ली में केजरीवाल और केंद्र में मोदी ने उठाया उसकी कसौटी पर यह बजट कितना उतर पाता है यह देखना अभी बाकी है!


क्यों है 16वीं लोकसभा का यह बजट द्वादशी महत्तवपूर्ण----


तीस साल बाद कोई पार्टी बहुमत में है। इस लोकसभा चुनाव में कई क्षेत्रीय दलों का सूपड़ा साफ हो चुका है। विकास के नाम पर चली वोटों की आँधी ने पुराने कई समीकरणों को नष्ट कर दिया है। ऐसे में सरकार के पास मजबूरी का रोना रोने का विकल्प नहीं हैं। जनता और खास कर युवा ठोस परिणाम चाहती है। जिसे ना पूरा कर पाने की कीमत आगामी विधानसभा चुनावों में चुकानी पड़ सकती हैं।
                                                        
                                                                        
                                               योजना से साभारकुछ परिवर्तनों के साथ।           
   
                            
क्या हैं विकल्प-  


महँगाई-
         खाद्य मुद्रास्फीति, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें सुरसा का एहसास करा रही है। इस मुद्दे पर सरकार अत्यंत ठोस कदम उठाए ताकि इस पर त्वरित और प्रभावी लगाम लगाई जा सके। लेकिन, यह अगर आसान नहीं है तो दूर की कौड़ी भी नहीं है। यह कोई नई बात नहीं है कि महँगाई के पीछे ज़माखोर है। जनता यह सब पिछली सरकार से सुनकर अनसुना कर चुकी है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नीतियाँ बनाएँ और उनको अमल में लाए


बजट घाटा-
      बजट घाटे को कम करने के लिए सामाजिक योजनाओं में दी जा रही सब्सिडी को कम करना जोखि़म भरा कदम है। इसके बजाय सरकार को इसमें होने वाले रिसाव को रोकने और इसे प्रभावी ढंग से जरूरतमंदों तक पहँचाने के प्रयास करने चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका बेजा लाभ उठाने वालों पर तेज और कठोर कार्रवाई हो। इस घाटे को कम करने के लिए सांसद और विधायक निधि को कम करने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए। साथ ही इस निधि की प्रभावोत्पादकता भी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए।  यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अधिकारियों, विधायकों और सांसदों के सरकारी पैसों पर विदेश भ्रमण से देश को क्या लाभ मिल रहा है। समुचित लाभ ना मिलने की दशा में ऐसे ख़र्चों पर लगाम लगाने की प्रभावी कवायद तेज कर देनी चाहिए। सरकार को विजय माल्या के किंगफिशर के डिफाल्ट होने से सरकारी धन को हुए नुकसान को दृष्टांत मान कर उद्योगों को दी जाने वाली सब्सिडी को नियंत्रित करना चाहिए। साथ ही  ऐसे कानूनों को सख्ती से लागू करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए जिससे कर्जदारों से अनिवार्य रूप से ससमय पैसा वापस पाया जा सके।


राजस्व-वृद्धि-
        बजट घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार को अपना कोष बढाना होगा। विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआइ लाना एक अस्थायी उपाय है। सरकार को राजस्व-वसूली के लिए बने ढाँचे के भीतर से हो रहे रिसावों को चिन्हित कर फेवीक्वीक लगाना होगा ताकि पाँच साल के बाद बने रिपोर्ट-कार्ड में यह स्थान पा सके। साथ ही ''गार'' और ''जीएसटी'' जैसे मुद्दे को बिना छेद के कानून बना कर प्रभावी रूप से अमल में लाना होगा। इससे कर-चोरी करने वालों से एक हद तक निपटने में सफलता मिलनी तय है। साथ ही अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में जीएसटी के लागू होने से और प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में डीटीसी के लागू होने से एक लागत प्रभावी और पारदर्शी कर व्यवस्था की शुरूआत की जा सकेगी।


शिक्षा-
     शिक्षा के जरिये तर्कशील समाज का निर्माण करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पर, अगर यह सरकार इसे अवसर के रूप में बदले तो दृश्यांतर हो सकता है। इसके लिए सरकार को बजट का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करना होगा। स्कूलों से लेकर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक में संसाधन मुहैया कराना होगा। किताबी ज्ञान से अलग शोध आधारित शिक्षा -प्रणाली को मूर्त रूप देना होगा जिसके परिणाम दीर्घ अवधि में देखने को मिलेंगे। इसके लिए इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा।


इन सब के अलावा सरकार को प्रशासनिक क्रिया-कलापों में पारदर्शिता बढाने की दिशा में कार्य करना होगा। जनता बेस़ब्री से सरकार की इस द्वादशी का इंतज़ार कर रही है ताकि वह देख पाए कि द्वादशी से पहले की कड़वी घूँटें केवल ''आम आदमी'' तक ही ना सीमित रह जाय!







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